नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। भारत में आत्महत्या के कारण हर साल 1,70,000 से अधिक लोगों की जान चली जाती है, ऐसे में देश में आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए मानसिक स्वास्थ्य से आगे भी ध्यान देना जरूरी है। यह बात मंगलवार को ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ पर ‘द लैंसेट जर्नल’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में एक विशेषज्ञ ने कही।
आत्महत्या एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। इसके कारण हर साल दुनिया भर में 7,00,000 से ज़्यादा मौतें होती हैं। आत्महत्या से होने वाली मौतों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है।
आत्महत्या को कम करने के लिए और इस विषय पर खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इस साल का विषय “आत्महत्या पर नैरेटिव बदलना” है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (पीएचएफआई) में सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्रोफेसर डॉ. राखी डंडोना ने आईएएनएस को बताया कि “दुर्भाग्य से, आत्महत्या को अब तक एक अपराध के रूप में कलंकित किया गया है, लेकिन आत्महत्या वास्तव में एक जटिल सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। अब तक आत्महत्या की रोकथाम के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन आत्महत्या की रोकथाम के लिए हमें मानसिक स्वास्थ्य से आगे ध्यान देने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा कि सामाजिक कारणों को भी राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों में शामिल किया जाना चाहिए। यह भारत के लिए विशेष रूप से जरूरी है, जिसने 2022 में राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति जारी की। इसमें विशेषज्ञों ने मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ गरीबी, कर्ज, घरेलू हिंसा और सामाजिक अलगाव को भी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार माना।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारत में आत्महत्या से 1.71 लाख लोगों की मौत हो गई। आत्महत्या की दर बढ़कर 12.4 प्रति 1,00,000 हो गई, जो अब तक की सबसे ज्यादा है।
आत्महत्या करने वालों में 40 प्रतिशत से अधिक 30 वर्ष से कम आयु के युवा हैं। हर आठ मिनट में एक युवा भारतीय आत्महत्या कर रहा है।
–आईएएनएस
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