आंखों को स्वस्थ रखने के लिए जान लें कितने समय पर कराते रहनी चाहिए

आंखों को स्वस्थ रखने के लिए जान लें कितने समय पर कराते रहनी चाहिए

आंखों को हेल्दी रखने और किसी समस्या का समय रहते पता लगाने के लिए समय-समय पर जांच कराते रहना जरूरी है। लेकिन कितने समय पर ये सबसे बड़ा सवाल होता है। आज के लेख में हम इसी के बारे में जानेंगे कि कैसे इस एक बात पर ध्यान देकर आप रह सकते हैं कई सारी समस्याओं से दूर।

भारत में आंख की समस्याएं एक बड़ी चिंता का विषय हैं, इसलिए लोगों को आई हेल्थ के बारे में जागरूक करना जरूरी है। इस समय भारत में लगभग 49.5 लाख लोग नेत्रहीनता का शिकार हैं और 7 करोड़ लोगों का कमजोर दृष्टि का शिकार हैं। इनमें 2.4 लाख नेत्रहीन बच्चे भी शामिल हैं। जहां नेत्रहीनता का सबसे बड़ा कारण मोतियाबिंद है, तो वहीं कमजोर दृष्टि का कारण रिफ़्रैक्टिव समस्याएं हैं।

नेत्रहीनता जानलेवा नहीं होती है, लेकिन यह व्यक्ति के जीवन कई तरीकों से प्रभावित करती है। पांच मुख्य ज्ञानेन्द्रियों में शामिल होने के बावजूद लोग इसकी हेल्थ पर इतना ध्यान नहीं देते।

समय पर जरूरी कदम उठाकर और आंखों की जांच करा कर ग्लूकोमा, मोतियाबिंद और डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी कई बीमारियों से बचा जा सकता है और उन्हें ठीक किया जा सकता है। भारत में आई-केयर के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना बहुत ज़रूरी है। उतना ही ज़रूरी लोगों को यह समझाना भी है कि उन्हें आंखों की जांच कब करवानी चाहिए।

1. उम्र के अनुसार
• बच्चे और किशोर: लगभग 6 महीने की उम्र में आंखों की जांच कराना शुरु करें। 3 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करने से पहले फिर से जांच कराएं। पढ़ाई के दौरान दो से तीन साल में और पढ़ाई खत्म होने के बाद भी दो साल में एक बार जांच कराते रहें।

• वयस्क (18-60): अगर आंखों की कोई समस्या या जोखिम नहीं है, तो हर दो साल में एक बार आंखों के डॉक्टर को दिखाएं। अगर आप करेक्टिव लेंस पहनते हैं या आपको कोई प्रॉब्लम है, तो हर साल आंखों की जांच करा लें।

• वरिष्ठ नागरिक (60+): 60 वर्ष की आयु के बाद हर साल आंखों की जांच करानी चाहिए, क्योंकि बढ़ती उम्र में आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है।

2. आंख की समस्याएं
• ग्लूकोमा: जिनके परिवार में आंख से जुड़ी समस्यार रही हों, उन्हें हर 1 से 2 साल में आंखों की जांच करवाते रहनी चाहिए। अगर आपको ग्लूकोमा डायग्नोज़ हुआ है, तो आपको और ज़्यादा सर्तक रहना चाहिए।

• मधुमेह: मधुमेह से पीड़ित लोगों को डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा ज़्यादा होता है। किसी भी परेशानी से बचने के लिए हर साल आंखों की जांच कराएं।

• बढ़ती उम्र के कारण मैक्यूलर डिजनरेशन (एएमडी): अगर आपको एएमडी है या उम्र और पारिवारिक इतिहास के कारण इसका जोखिम है, तो आपको समय-समय पर डॉक्टर से कंसल्ट करते रहना चाहिए।

3. देखने में परेशानी
आंखों में किसी तरह की कोई परेशानी जैसे धुंधलापन, दर्द, या तनाव महसूस हो, तो भी डॉक्टर से संपर्क करें। ये परेशानियां रिफ़्रैक्टिव प्रॉब्लम्स, ग्लूकोमा या रेटिनल डिटैचमेंट आदि के कारण हो सकते हैं।

आंखों की जांच कब-कब करानी है, यह कई चीज़ों पर डिपेंड करता है। इसमें उम्र, आंखों की मौजूदा स्थिति, लाइफस्टाइल इन सभी की भूमिका है।

(डॉ. सुदीप्तो पकरासी, चेयरमैन, ऑप्थल्मोलॉजी, मेदांता, गुरूग्राम से बातचीत पर आधारित)

 

 

 

E-Magazine