'सतीश को संगीत और पुराने गाने बहुत पसंद थे', दीप्ति नवल ने सुनाए अभिनेता से जुड़े किस्से


मुंबई, 2 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में कई कलाकार ऐसे होते हैं, जिनकी अदाकारी और उनकी मौजूदगी लोगों के दिलों में हमेशा याद रहती है। उनमें से एक नाम था सतीश शाह का, जिनकी नाटकीय प्रतिभा और हास्य क्षमता ने उन्हें दर्शकों का खास बना दिया।

लंबे समय तक मनोरंजन की दुनिया में सक्रिय रहने वाले सतीश शाह ने फिल्मों, टीवी शो और रंगमंच में अपना अद्वितीय योगदान दिया। उनके जाने से फिल्म और टेलीविजन जगत में एक खालीपन है। उनकी पुरानी सहयोगी और मशहूर अभिनेत्री दीप्ति नवल ने सोशल मीडिया पर सतीश शाह के साथ बिताए खास पलों को साझा किया है।

उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपने प्रिय दोस्त को अलविदा कहा है। दीप्ति नवल ने बताया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि सतीश शाह किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे।

दीप्ति नवल ने अपने पोस्ट के कैप्शन में लिखा, “हमारे बेहद प्यारे दोस्त सतीश शाह को अलविदा कह रही हूं, जिनके साथ मैंने ‘साथ-साथ’ में काम किया था। मुझे उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मुझे आश्चर्य हुआ जब उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया है। वह एक बेहतरीन अभिनेता थे, जिन्हें हर कोई पसंद करता था।”

उन्होंने अपने पोस्ट में आगे लिखा, “सतीश को संगीत और पुराने गाने बहुत पसंद थे। अक्सर वह मुझे व्हाट्सएप पर गाने शेयर करते थे, लेकिन हाल ही में हमारा संपर्क टूट गया था। मेरा पहला अभिनय अनुभव सतीश के साथ ही रहा।”

उन्होंने सतीश शाह की पत्नी मधु शाह के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, “मधु के प्रति मेरी संवेदनाएं, सतीश जी की आत्मा को शांति मिले।”

दीप्ति ने अपनी पोस्ट में फिल्म ‘साथ-साथ’ का जिक्र किया है, जो 1982 में रिलीज हुई थी। इसे रमन कुमार ने लिखा और निर्देशित किया था, वहीं दिलीप धवन ने इसका निर्माण किया। इस फिल्म में फारूक शेख और दीप्ति नवल मुख्य भूमिकाओं में हैं, जबकि सतीश शाह और अन्य कलाकारों ने सहायक भूमिकाएं निभाई हैं। यह फिल्म समाज, परिवार और व्यक्तिगत मूल्यों के संघर्ष की कहानी पेश करती है।

फिल्म की कहानी अविनाश वर्मा नामक एक युवक के बारे में है, जो समाजवादी विचारों का पालन करता है और भौतिक सुख-सुविधाओं में ज्यादा रुचि नहीं रखता। वह एक अमीर जमींदार का बेटा होने के बावजूद अपने सिद्धांतों के कारण घर छोड़ देता है और स्वतंत्र लेखक बन जाता है।

उसकी सहपाठी गीतांजलि गुप्ता, जिसे लोग गीता कहकर बुलाते हैं, उसके विचारों से प्रभावित होकर उससे प्यार करने लगती है। दोनों विवाह कर लेते हैं और जल्द ही बच्चे की उम्मीद करते हैं। आर्थिक कठिनाइयों के चलते उसे अपने सहपाठी सतीश शाह की प्रकाशन कंपनी में काम करना पड़ता है। रात की नौकरी के कारण दोनों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो जाता है। वहीं, अविनाश अपने आदर्शों से समझौता करने लगता है। इन सबसे परेशान गीता उसे छोड़ने का फैसला करती है।

फिल्म का क्लाइमैक्स काफी दिलचस्प है। फिल्म में जावेद अख्तर द्वारा लिखे गए गीत और कुलदीप सिंह का संगीत कहानी को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाते हैं। इसमें जगजीत सिंह, चित्रा सिंह और अन्य कलाकारों की शानदार आवाज शामिल हैं।

–आईएएनएस

पीके/एएस


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