शोधकर्ताओं ने ढूंढा जेनेटिक डिसऑर्डर 'एंजेलमैन सिंड्रोम' का संभावित उपचार

शोधकर्ताओं ने ढूंढा जेनेटिक डिसऑर्डर 'एंजेलमैन सिंड्रोम' का संभावित उपचार

सैन फ्रांसिस्को, 8 जुलाई (आईएएनएस)। अमेरिका स्थित नॉर्थ कैरोलाइना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने असामान्य जेनेटिक डिसऑर्डर एंजेलमैन सिंड्रोम’ के संभावित उपचार की पहचान की है।

शोधकर्ताओं ने नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित शोध में बताया कि ‘एंजलमैन सिंड्रोम’ मातृवंशीय UBE3A जीन में म्यूटेशन के कारण होता है। इससे पीड़ित व्‍यक्ति में मिर्गी, बौद्धिक अक्षमता, बोलने और संतुलन (एटैक्सिया) बनाए रखने में समस्याएं आती हैं। एंजलमैन सिंड्रोम (एएस) एक दुर्लभ न्यूरो-जेनेटिक विकार है जो दुनिया भर में 500,000 लोगों में से एक में होता है। यह मां से प्राप्त 15वें गुणसूत्र में UBE3A जीन के कार्य में कमी के कारण होता है।

यूएनसी स्कूल ऑफ मेडिसिन में केनन प्रतिष्ठित प्रोफेसर, बेन फिलपोट, पीएचडी और उनकी प्रयोगशाला ने एक छोटे अणु की पहचान की है जो सुरक्षित और गैर-आक्रामक तरीके से वितरित किया जा सकता है तथा यह मस्तिष्क में निष्क्रिय पैतृक रूप से विरासत में मिली UBE3A जीन प्रतिलिपि को सक्रिय करने में सक्षम है, जिससे उचित प्रोटीन और कोशिका कार्य हो सकेगा, जो एंजेलमैन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक प्रकार की जीन थेरेपी के समान है।

एंजलमैन सिंड्रोम के एक प्रमुख विशेषज्ञ फिलपोट ने कहा, “हमने जो कंपाउंड पहचाना है, उसने पशु मॉडल के विकासशील मस्तिष्क में सबसे मजबूत मिलान दिखाया है।”

शोधकर्ताओं के अनुसार, UBE3A महत्वपूर्ण प्रोटीन के स्तर को विनियमित करने में मदद करता है, यह एक वर्किंग कॉपी की कमी से मस्तिष्क के विकास में गंभीर व्यवधान पैदा करता है।

शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने के लिए 2,800 से अधिक छोटे अणुओं की जांच की। उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया कि क्या एंजेलमैन सिंड्रोम वाले माउस मॉडल में पैतृक UBE3A को प्रभावी ढंग से सक्रिय किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने एंजेलमैन सिंड्रोम से पीड़ित मनुष्यों से प्राप्त प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कर समान परिणामों की पुष्टि की, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस यौगिक में नैदानिक ​​क्षमता है, जैसा कि अध्ययन में उल्लेख किया गया है।

इसके अलावा उन्होंने पाया कि (S)-PHA533533 की विकासशील मस्तिष्क में उत्कृष्ट जैव उपलब्धता है, जिसका अर्थ है कि यह आसानी से अपने लक्ष्य तक पहुंचता है और वहां चिपक जाता है।

अध्ययन की लेखिका और पीएचडी हन्ना विहमा ने कहा, “हम यह दिखाने में सक्षम थे कि (S)-PHA533533 का सबसे मजबूत मिलान था और उसी छोटे अणु को मानव-व्युत्पन्न तंत्रिका कोशिकाओं में बदला जा सकता है जो एक बड़ी खोज है।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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