मेडिकल रिपोर्ट देखकर आमतौर पर बढ़ जाती है मरीजों की चिंता, अध्ययन ने बताया कारण

मेडिकल रिपोर्ट देखकर आमतौर पर बढ़ जाती है मरीजों की चिंता, अध्ययन ने बताया कारण

न्यूयॉर्क, 5 जनवरी (आईएएनएस)। दुनियाभर में मेडिकल रिपोर्ट्स इस तरह लिखी जाती हैं कि आम मरीज उन्हें समझ नहीं पाते, जिससे उनकी चिंता बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये रिपोर्ट्स आमतौर पर विशेषज्ञ डॉक्टरों जैसे सर्जन या कैंसर विशेषज्ञों के लिए लिखी जाती हैं, न कि मरीजों के लिए।

मिशिगन यूनिवर्सिटी की डॉक्टर कैथरीन लैपेडिस और उनके साथियों ने एक अध्ययन में यह जानने की कोशिश की कि क्या लोग आम पैथोलॉजी रिपोर्ट्स को समझ सकते हैं, और क्या मरीजों के लिए खासतौर पर तैयार की गई रिपोर्ट्स उनकी समझ में सुधार कर सकती हैं।

जेएएमए जर्नल में पब्लिश अध्ययन के अनुसार, डॉक्टर लैपेडिस ने बताया कि “मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स” में मेडिकल शब्दों को आसान भाषा में पेश किया जाता है, ताकि मरीजों को अपने स्वास्थ्य की सही जानकारी मिल सके। उदाहरण के लिए, जहां एक सामान्य रिपोर्ट में “प्रोस्टेटिक एडेनोकार्सिनोमा” जैसा जटिल शब्द लिखा होता है, वहीं मरीज-केंद्रित रिपोर्ट इसे सीधा “प्रोस्टेट कैंसर” कहती है।

अध्ययन के लिए 55 से 84 साल के 2,238 वयस्कों को शामिल किया गया, जिनका प्रोस्टेट कैंसर का इतिहास नहीं था। इन लोगों को एक काल्पनिक स्थिति दी गई, जिसमें उन्होंने यूरिन से जुड़ी समस्याओं के लिए जांच करवाई और बायोप्सी के नतीजे उन्हें ऑनलाइन पोर्टल पर भेजे गए।

इनसे यह भी पूछा गया कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद उनकी चिंता का स्तर क्या है।

लैपेडिस ने अध्ययन में पाया गया अधिकतर लोगों को सामान्य जानकारी की भी समझ नहीं थी। सामान्य रिपोर्ट पढ़ने वाले केवल 39% लोग ही यह समझ सके कि उन्हें कैंसर है। वहीं, मरीज-केंद्रित रिपोर्ट पढ़ने वाले 93% लोगों ने सही-सही समझ लिया कि उन्हें कैंसर है।

इससे यह भी पता चला कि मरीजों की चिंता का स्तर उनके वास्तविक खतरे के स्तर से मेल खा रहा था।

अध्ययन के लेखक सुझाव देते हैं कि अस्पतालों को मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स को अपनी प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए, ताकि मरीज अपनी स्थिति को बेहतर तरीके से समझ सकें।

–आईएएनएस

एएस/

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