न्यूयॉर्क, 10 फरवरी (आईएएनएस)। स्तन या पेट के कैंसर की तरह ही ओवेरियन कैंसर का भी फर्स्ट स्टेज में पता लगाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि इसमें कब्ज, सूजन और पीठ दर्द जैसे अस्पष्ट लक्षण दिखाई देते हैं।
अमेरिका में वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में जोसेफ रेनर और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया नया शोध, मूत्र-आधारित परीक्षण से ओवेरियन कैंसर का पता लगाने का वादा करता है।
पिछले शोध से पता चला है कि ओवेरियन कैंसर से पीड़ित लोगों के मूत्र में हजारों छोटे अणु होते हैं, जिन्हें ‘पेप्टाइड्स’ कहा जाता है।
हालांकि पहले से मौजूूद कुछ तकनीकों का उपयोग करके उन अणुओं का पता लगाना संभव है, लेकिन वे तकनीकें सीधे सीधे तौर पर प्रभावी नहीं है। लेकिन रेनर ने उन पेप्टाइड्स का अधिक आसानी से पता लगाने के लिए एक नया दृष्टिकोण खोजा है।
उन्होंने नैनोपोर सेंसिंग की ओर रुख किया, जिसमें एक साथ कई पेप्टाइड्स का पता लगाने की क्षमता है।
नैनोपोर सेंसिंग (स्केलेबल तकनीक) में अणुओं के गुजरने के दौरान विद्युत प्रवाह या अन्य गुणों में परिवर्तन को मापना शामिल है।
विभिन्न पेप्टाइड्स का पता लगाने के लिए नैनोपोर तकनीक का उपयोग करने के लिए, रेनर ने गोल्ड नैनोकणों का उपयोग किया जो छिद्र को आंशिक रूप से अवरुद्ध कर सकते हैं।
रेनर ने समझाया, ”ओवेरियन कैंसर से पीड़ित लोगों के मूत्र में पेप्टाइड्स तब “गोल्ड के कण से चिपक जाएंगे और मूल रूप से चारों ओर दिखाई देंगे।”
यह विधि एक साथ कई पेप्टाइड्स की पहचान करने में सक्षम है। अपने अध्ययन में रेनर ने 13 पेप्टाइड्स की पहचान की और उनका विश्लेषण किया, जिनमें एलआरजी-1 से प्राप्त पेप्टाइड्स भी शामिल हैं, वह ओवेरियन कैंसर के रोगियों के मूत्र में पाया जाने वाला एक बायोमार्कर है।
रेनर ने कहा, “अब हम जानते हैं कि वे अणु कैसे दिखते हैं, और वे इस पहचान के लिए कैसे उपयोग किए जा सकते हैं। यह एक फिंगरप्रिंट की तरह है जो मूल रूप से हमें बताता है कि पेप्टाइड क्या है।”
रेनर ने कहा, ”क्लिनिकल डेटा से पता चलता है कि जब कैंसर का शुरुआती चरण में पता चल जाता है तो 5 साल की जीवित रहने की दर में 50-75 प्रतिशत का सुधार होता है। यह कई प्रकार के कैंसर के लिए सच है।”
उनका अंतिम लक्ष्य एक ऐसा परीक्षण विकसित करना है जो सीए-125 रक्त परीक्षण, ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड और पारिवारिक इतिहास जैसी अन्य जानकारी के साथ मिलकर भविष्य में प्रारंभिक चरण के ओवेरियन कैंसर का पता लगाने की सटीकता में सुधार कर सके।
ओवेरियन कैंसर की समग्र जीवित रहने की दर केवल 35 प्रतिशत है। अधिक सरल स्क्रीनिंग प्रक्रिया शीघ्र निदान में सुधार कर सकती है और जीवित रहने की दर को जन्म दे सकती है।
–आईएएनएस
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