भारत के ग्रीन एनर्जी ट्रांसमिशन लाइन का कैपेक्स अगले दो वित्त वर्ष में डबल होकर हो जाएगा एक लाख करोड़ : रिपोर्ट


नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस)। इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम सेक्टर में वित्त वर्ष 2026 और 2027 में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) होगा। इसका मुख्य उद्देश्य रिन्यूएबल एनर्जी निकासी को सपोर्ट करना है, जो वित्त वर्ष 2024 और 2025 के बीच किए गए 50,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय से दोगुना है। यह जानकारी गुरुवार को जारी क्रिसिल की रिपोर्ट में दी गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण चरण के दौरान, ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट को कई निष्पादन जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इसमें राइट ऑफ वे (आरओडब्ल्यू), वन मंजूरी और सप्लाई चेन से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। फिर भी, डेवलपर्स की क्रेडिट प्रोफाइल हेल्दी कैश फ्लो और मजबूत फंडिंग विजिबिलिटी द्वारा समर्थित बनी हुई है।

तीन डेवलपर्स का विश्लेषण, जो अपेक्षित पूंजीगत व्यय का 80-85 प्रतिशत हिस्सा होने का अनुमान है, इस बात का संकेत देता है।

रिन्यूएबल कैपेसिटी एडिशन में गति को देखते हुए ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। क्रिसिल रेटिंग्स को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 और 2027 में सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में 65-75 गीगावाट की वृद्धि होगी। ट्रांसमिशन क्षमताओं की समय पर योजना बनाना और उन्हें चालू करना महत्वपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि ट्रांसमिशन परियोजना की निष्पादन अवधि आम तौर पर 2-4 साल होती है, जो कि रिन्यूएबल एनर्जी परियोजना की तुलना में दोगुनी है।

क्रिसिल रेटिंग्स के मनीष गुप्ता ने कहा, “ट्रांसमिशन क्षमता वृद्धि की जरूरत को देखते हुए, वित्त वर्ष 2024 और 2025 में परियोजनाओं के आवंटन में 1.6 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है।”

उन्होंने बताया, “हमने देखा है कि इन परियोजनाओं के चालू होने में औसतन लगभग 10 महीने की देरी हुई है, जबकि कुछ परियोजनाओं में तो 18 महीने से अधिक की देरी हुई है। इन देरी को ध्यान में रखते हुए, हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2027 तक 60 गीगावाट तक की संभावित रिन्यूएबल एनर्जी कैपेसिटी के लिए ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी सक्षम हो जाएगी।”

विद्युत मंत्रालय ने तेजी से निष्पादन को सपोर्ट करने के लिए, ट्रांसमिशन परियोजनाओं के लिए आरओडब्ल्यू के लिए भूमि मुआवजा दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।

जून 2024 में, हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों के लिए टावर बेस क्षेत्र के लिए भूमि मुआवजे को भूमि मूल्य के 85 प्रतिशत से बढ़ाकर 200 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे भूमि मालिकों के लिए मुआवजा बढ़ गया और इस तरह, आरओडब्ल्यू से जुड़ी देरी कम हो गई।

इसके अलावा, ट्रांसमिशन क्षेत्र में जरूरी तत्काल रैंप-अप को देखते हुए, विशेष रूप से ट्रांसफॉर्मर जैसे सब-स्टेशन उपकरणों के साथ-साथ हाई-वोल्टेज डायरेक्ट करंट ( एचवीडीसी) घटकों के लिए एक निर्बाध सप्लाई चेन बनाए रखना समय पर निष्पादन के लिए महत्वपूर्ण रहेगा।

क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक आनंद कुलकर्णी ने कहा कि “हमें उम्मीद है कि ये परियोजनाएं 11-14 प्रतिशत की इक्विटी पर रिटर्न उत्पन्न करेंगी”।

परियोजना में देरी के प्रति रिटर्न की संवेदनशीलता के बावजूद, डेवलपर्स बढ़ती पूंजीगत व्यय तीव्रता को अवशोषित करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं।

–आईएएनएस

एसकेटी/सीबीटी


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