नई दिल्ली, 3 सितंबर (आईएएनएस)। सातवें राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्ल्यूसीडी) ने मंगलवार को कहा कि इस बार एनीमिया पर खास फोकस रहेगा।
एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जहां शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर की कमी होती है, जिससे शरीर की विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने की क्षमता प्रभावित होती है। यह मुख्य रूप से भारत में छोटे बच्चों, किशोरियों, गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाओं तथा प्रजनन आयु वाली महिलाओं को प्रभावित करती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण (एनएचएफएस-4) के अनुसार, एनीमिया की व्यापकता 2015-16 में 53 प्रतिशत थी। यह 2019-2021 (एनएफएचएस-5) में 57 प्रतिशत तक बढ़ गई।
एनएफएचएस-5 के अनुसार, गैर-गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता गर्भवती महिलाओं की तुलना में 52.2 प्रतिशत अधिक है।
मंत्रालय ने कहा, “भविष्य की पीढ़ियों पर एनीमिया के अंतर-पीढ़ीगत प्रभावों को रोकने के लिए पोषण संबंधी किसी भी कमी को ठीक करने का सही समय किशोरावस्था है।”
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने शनिवार को सातवें राष्ट्रीय पोषण माह 2024 का शुभारंभ किया था। पोषण माह के तहत मंत्रालय ने एनीमिया से संबंधित विभिन्न विषयों और गतिविधियों को शुरू किया है।
मंत्रालय ने कहा कि सितंबर 2023 में आयोजित पिछले पोषण माह में, 35 करोड़ से अधिक जागरूकता गतिविधियां की गईं, जिनमें से लगभग चार करोड़ गतिविधियां एनीमिया पर केंद्रित थीं।
इसके अलावा, इसने सीधे 69 लाख गर्भवती महिलाओं और 43 लाख दूध पिलाने वाली माताओं तक पहुंच बनाई। इस योजना में वर्तमान में आकांक्षी जिलों और पूर्वोत्तर क्षेत्र की किशोर लड़कियों के लिए योजना के तहत 22 लाख से अधिक किशोर लड़कियां (14-18 वर्ष) शामिल हैं।
मंत्रालय ने कहा, ”बालिकाओं की भागीदारी कुपोषण-मुक्त भारत बनाने के लिए आवश्यक अतिरिक्त गति प्रदान करने की सारी संभावनाएं रखती है।”
इस बीच फरवरी में डब्ल्यूसीडी मंत्रालय ने आयुष मंत्रालय के साथ एनीमिया के प्रबंधन और साक्ष्य-आधारित आयुर्वेद हस्तक्षेपों के माध्यम से पांच उत्कर्ष जिलों में किशोर लड़कियों (14-18 वर्ष की आयु) की पोषण स्थिति में सुधार करने के लिए एक पहल शुरू की थी।
–आईएएनएस
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