उत्तराखंड में यूसीसी को हरी झंडी मिलने के बाद से अब असम सरकार ने मुस्लिम मैरिज के मामले में एक कदम उठाया है. असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण कानून को निरस्त कर दिया है.
बता दें कि हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने इस कानून को निरस्त करने का फैसला 24 फरवरी देर रात को लिया. दरअसल, इस कानून में ऐसे प्रावधान थे कि अगर दूल्हा और दुल्हन शादी की कानूनी उम्र यानी लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल के नहीं हुए हैं, तो भी शादी को पंजीकृत कर दिया जाता था.यह असम में बाल विवाह रोकने की दिशा में अहम कदम है.
असम सरकार की ओर से बताया गया कि मुस्लिम विवाह एवं तलाक पंजीकरण कानून खत्म होने के बाद मुस्लिमों की शादी का पंजीकरण भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार के द्वारा कर सकेंगे. साथ ही सरकार ने ऐलान किया कि मुस्लिम विवाह का पंजीकरण करने वाले रजिस्ट्रार्स को हटाया जाएगा और उन्हें एकमुश्त दो-दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा. असम सरकार ने कानून हटाने के पीछे तर्क दिया है कि ये कानून अंग्रेजी शासनकाल के दौर के हैं.
कानून रद्द होने पर क्या बदलेगा?
कानून के तहत राज्य सरकार मुस्लिमों की शादी और तलाक का पंजीकरण करने का लाइसेंस देती थी. लेकिन अब कानून हटने के बाद कोई भी व्यक्ति शादी
और तलाक का पंजीकरण नहीं करा सकेगा. और यह औपचारिक रूप से हो सकेगा.कहा जा रहा है कि इस कानून का खत्म होना राज्य में समान नागरिक संहिता लागू होने की दिशा में अहम कदम है.
फिलहाल असम सरकार के इस फैसले पर दूसरे राज्यों में भी हलचल बढ़ गई है. और यूपी में भी नेता अपनी प्रतिक्रिया इसपर दे रहे है.