नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। विशेषज्ञों ने कहा है कि आइसक्रीम, कुकीज, दही और मेयोनेज में स्वाद बढ़ा देने वाले जैंथम गम और ग्वार गम जैसे इमल्सीफायर डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
लंबे समय से सीमित स्तर पर सुरक्षित माने जाने वाले ये फूड एडिटिव अब स्तन और प्रोस्टेट के कैंसर जैसे विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों के लिए जोखिम कारक के रूप में उभर रहे हैं।
‘द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी’ जर्नल में छपे 14 साल लंबे फ्रांसीसी अध्ययन से पता चला है कि आमतौर पर इमल्सीफायर टाइप 2 डायबिटीज के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
अध्ययन के अनुसार मधुमेह के खतरे को बढ़ाने वाले इमल्सीफायर में कैरेजेनन (प्रति दिन 100 मिलीग्राम की वृद्धि पर 3 प्रतिशत जोखिम), ट्रिपोटेशियम फॉस्फेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 15 प्रतिशत जोखिम) शामिल हैं। साथ ही फैटी एसिड के मोनो और डाइएसिटाइल टार्टरिक एसिड एस्टर (प्रति दिन 100 मिलीग्राम पर 4 प्रतिशत जोखिम), सोडियम साइट्रेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 4 प्रतिशत बढ़ा हुआ जोखिम), ग्वार गम (500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 11 प्रतिशत जोखिम), अरबी गम (प्रति दिन 1,000 मिलीग्राम पर 3 प्रतिशत जोखिम) और ज़ैंथन गम (प्रति दिन 500 मिलीग्राम पर 8 प्रतिशत जोखिम) शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार ये फूड एडिटिव आंत के माइक्रोबायोटा को बदल देते हैं, जिससे सूजन होती है और डायबिटीज हो जाती है।
सर गंगा राम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार एम वली ने आईएएनएस को बताया, ”अध्ययन बताते हैं कि इन इमल्सीफायरों के लंबे समय तक उपयोग से आंत के माइक्रोबायोटा में गड़बड़ी जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जब ऐसा होता है तो इंसुलिन प्रतिरोध में वृद्धि होती है।”
सीके बिड़ला अस्पताल गुरुग्राम के कंसल्टेंट्स इंटरनल मेडिसिन तुषार तायल ने कहा, ”इमल्सीफायर्स को आम तौर पर सुरक्षित माना जाता है और कुछ इमल्सीफायर्स जैसे जैंथम गम को कुछ परीक्षण विषयों में कोलेस्ट्रॉल के साथ-साथ फास्टिंग और पोस्ट-मील रक्त शर्करा को कम करने के लिए भी पाया गया।”
उन्होंने कहा, ”हालांकि,डायबिटीज और अन्य बीमारियों के साथ उनका संबंध आंत माइक्रोफ्लोरा में परिवर्तन के कारण होता है, यह ध्यान में रखते हुए कि बीमारी से बचने का सबसे सरल तरीका पैकेज्ड खाद्य उत्पादों के सेवन से बचना है।”
इमल्सीफायर फूड एडिटिव हैं जो दो पदार्थों को मिलाने में मदद करते हैं जो आम तौर पर संयुक्त होने पर अलग हो जाते हैं। इनका उपयोग खाद्य निर्माताओं द्वारा बनावट को बढ़ाने और विभिन्न अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में लंबे समय तक शेल्फ-लाइफ देने के लिए प्रयोग किया जाता है।
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के कंसल्टेंट डायबेटोलॉजी एंड एंडोक्राइनोलॉजी राकेश कुमार प्रसाद ने आईएएनएस को बताया, ”इमल्सीफायर सीधे आंतों के माइक्रोबायोटा की संरचना और कार्य को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे माइक्रोबायोटा अतिक्रमण और आंतों की सूजन हो सकती है, जिससे चयापचय संबंधी विकार बढ़ सकते हैं और उच्च रक्तचाप, मोटापा, डायबिटीज और अन्य कार्डियोमेटाबोलिक विकारों जैसी कई बीमारियों का भी खतरा हो सकता है।”
नवीनतम अध्ययन दुनिया भर और भारत में उच्च डायबिटीज दर के बीच आया है। आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार, भारत में डायबिटीज का कुल प्रसार 11.4 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि प्रीडायबिटीज 15.3 प्रतिशत है।
डॉक्टरों ने कहा कि जो लोग नियमित रूप से प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, या ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें इमल्सीफायर के रूप में एडिटिव होते हैं, उन्हें जोखिम ज्यादा होता है।
–आईएएनएस
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