नई दिल्ली, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। एक शोध में यह बात सामने आई है कि दिल की बीमारी में इस्तेमाल होने वाली दवा हंटिंगटन रोग को रोकने में मदद कर सकती है। यह बीमारी मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है।
हंटिंगटन के सामान्य लक्षणों में झटके (जर्क मूवमेंट) और ऐंठन जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। इसके अलावा अनियंत्रित मूवमेंट, निगलने में कठिनाई, अस्पष्ट भाषा और चलने में परेशानी हो सकती है।
अमेरिका में आयोवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि हृदय और रक्तचाप संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली बीटा-ब्लॉकर दवाओं के उपयोग से पूर्व लक्षण वाले लोगों में हंटिंगटन के लक्षण काफी देर से प्रकट हो सकते हैं।
जिन लोगों में यह रोग पाया गया उनमें बीटा ब्लॉकर से लक्षणों के बिगड़ने की दर भी धीमी हो गई।
विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख लेखक जॉर्डन शुल्ट्ज ने कहा, ”इस चीज को देखते हुए कि हंटिंगटन रोग के लिए कोई रोग-संशोधक एजेंट नहीं हैं, बीटा-ब्लॉकर्स इसके लिए बेहतर है। यह मरीज को रोग की विभिन्न स्टेज में लाभ दे सकती है।”
पिछले शोधों से पता चला है कि हंटिंगटन रोग से पीड़ित मरीजों में आराम करते समय भी ‘फाइट और फ्लाइट’ रिफ्लेक्स की प्रवृत्ति अधिक प्रबल होती है।
टीम ने नोरेपिनेफ्राइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर और हार्मोन की क्रिया को अवरुद्ध करने वाले बीटा ब्लॉकर्स को लक्ष्य बनाया।
जेएएमए न्यूरोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के लिए टीम ने हंटिंगटन के रोगियों के दो अलग-अलग समूहों पर ध्यान केंद्रित किया। एक समूह में रोग उत्पन्न करने वाले आनुवंशिक उत्परिवर्तन थे, लेकिन जिनमें अभी तक महत्वपूर्ण नैदानिक लक्षण दिखाई नहीं दिए थे, तथा दूसरे समूह में वे रोगी थे, जिनका नैदानिक निदान हो चुका था, जिन्हें मोटर-मेनिफेस्ट रोगी (एमएम समूह) कहा गया।
प्रत्येक समूह के भीतर, टीम ने उन रोगियों की पहचान की जो कम से कम एक वर्ष से बीटा-ब्लॉकर ले रहे थे।
इसके बाद, टीम ने 174 प्री और 149 मिमी बीटा-ब्लॉकर उपयोगकर्ताओं को समान संख्या में समान गैर-बीटा-ब्लॉकर उपयोगकर्ताओं से मिलाया।
विश्लेषण से पता चला कि प्री-बीटा ब्लॉकर उपयोगकर्ताओं में हंटिंगटन के नैदानिक निदान प्राप्त करने का वार्षिक जोखिम काफी कम था। इससे संकेत मिलता है कि बीटा ब्लॉकर का उपयोग बीमारी के बाद के दौर से जुड़ा हुआ था।
एमएम समूह में बीटा ब्लॉकर्स लेने वाले मरीजों में मोटर, संज्ञानात्मक और कार्यात्मक लक्षणों की क्रमिक बिगड़ती स्थिति में महत्वपूर्ण कमी देखी गई।
–आईएएनएस
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