कंपनियों के भ्रामक पर्यावरणीय दावों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र के मानदंडों की उद्योग जगत ने की सराहना

कंपनियों के भ्रामक पर्यावरणीय दावों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र के मानदंडों की उद्योग जगत ने की सराहना

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (आईएएनएस)। उद्योग विशेषज्ञों ने सोमवार को उपभोक्ता मामलों के विभाग के कंपनियों के ‘ग्रीन वॉशिंग’ या भ्रामक पर्यावरणीय दावों पर अंकुश लगाने के लिए नए दिशानिर्देशों की सराहना की।

‘ग्रीन वॉशिंग’ (जिसमें कंपनियां अपने उत्पादों और सेवाओं के पर्यावरणीय लाभों का बढ़ा-चढ़ाकर या गलत तरीके से विज्ञापन करती हैं) को लेकर वैश्विक चिंताओं ने जन्म लिया है।

इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) के अनुसार, एनवायरमेंटल सस्टेनेबिलिटी से जुड़े विज्ञापनों में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ‘ग्रीन वॉशिंग या भ्रामक पर्यावरणीय दावों की रोकथाम और विनियमन के लिए दिशानिर्देश, 2024’ देश में नैतिक व्यावसायिक प्रैक्टिस को बढ़ावा देंगे।

आईसीईए के अध्यक्ष पंकज मोहिन्द्रू ने कहा, “ये दिशानिर्देश उपभोक्ता हितों की रक्षा और व्यवसायों को उनके सस्टेनेबल प्रैक्टिस को प्रभावी ढंग से बनाए रखने में महत्वपूर्ण होंगे। यह प्रगतिशील रुख एक नया अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित करता है। यह यूरोपीय संघ के नियमों की तुलना में एक बड़ा सुधार है, जो पर्यावरणीय दावों पर कठोर प्रतिबंध लगाते हैं।”

अस्पष्ट या निराधार दावे अक्सर उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं, जिससे विश्वास कमजोर होता है और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के प्रति सकारात्मक पहल कमजोर होती है।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशों में कंपनियों को अपने पर्यावरण संबंधी दावों के लिए विश्वसनीय साक्ष्य और पारदर्शी खुलासे उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया है। जिससे सुनिश्चित होगा कि उपभोक्ताओं को निर्णय लेने के लिए आवश्यक आंकड़ों तक आसान पहुंच हो।

मोहिन्द्रू ने कहा, “उद्योग के साथ सहयोग के बाद विकसित यह ढांचा कंपनियों को पारदर्शी खुलासे सुनिश्चित करते हुए वास्तविक पर्यावरणीय इनोवेशन को प्रदर्शित करने की अनुमति देता है। यह भारत की स्थिर प्रतिबद्धताओं, सीओपी लक्ष्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाइफ मिशन के साथ पूरी तरह से जुड़ा है।”

उपभोक्ता मामले विभाग की सचिव निधि खरे के अनुसार, ”पर्यावरणीय जिम्मेदारी का भ्रम पैदा कर कई बेईमान कंपनियां उपभोक्ताओं की बढ़ती पर्यावरणीय संवेदनशीलता का फायदा उठाती हैं।”

खरे ने कहा, “यह भ्रामक अभ्यास न केवल अच्छे इरादे वाले उपभोक्ताओं को गुमराह करता है, बल्कि व्यापक पर्यावरणीय प्रयासों से भी ध्यान हटाता है।”

–आईएएनएस

एसकेटी/एबीएम

E-Magazine