नई दिल्ली, 19 सितंबर (आईएएनएस)। पुणे में काम के दबाव के कारण एक युवा सीए की मौत की खबरों के बीच गुरुवार को विशेषज्ञों ने कहा कि थकान, नींद न आना और बार-बार बीमार पड़ना कार्यस्थल पर तनाव के कारण बर्नआउट और थकावट के शुरुआती संकेत हैं। इन पर नजर रखनी चाहिए तथा मदद लेनी चाहिए।
एना सेबेस्टियन पेरायिल (26) की मौत काम के बहुत ज्यादा दबाव के कारण हुई। मृतक की मां अनीता ऑगस्टीन ने चेयरमैन राजीव मेमानी को लिखे पत्र में यह दावा किया है।
पत्र में कहा गया कि पेरायिल ने अकाउंटिंग फर्म में चार महीने तक काम किया। लेकिन, उसके अंतिम संस्कार दौरान भी ऑफिस से कोई मौजूद नहीं था।
इस साल की शुरुआत में हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम करने वाले मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार सतीश नंदगांवकर का दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। दिल का दौर पड़ने से पहले उन्हें ऑफिस में अपमानित किया गया था।
एक अन्य मामले में, मैकिन्से एंड कंपनी में काम करने वाले 25 वर्षीय सौरभ कुमार लड्ढा ने कथित तौर पर काम के दबाव को झेलने में असमर्थ होने के कारण मुंबई में अपनी इमारत की नौवीं मंजिल से कूदकर जान दे दी थी।
इस सूची में और भी कई नाम शामिल हो सकते हैं।
बेंगलुरु स्थित एस्टर व्हाइटफील्ड अस्पताल में लीड कंसल्टेंट और एचओडी, इंटरनल मेडिसिन, डॉ. सुचिस्मिता राजमन्या ने आईएएनएस को बताया कि लगभग हर हफ्ते, “लगभग 6 से 10 मरीज तनाव और थकावट की शिकायत करते हैं।
राजमन्या ने कहा, “बर्नआउट और थकावट के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई दे सकते हैं, और शारीरिक रूप से ये लक्षण क्रोनिक थकान, अनिद्रा के साथ-साथ बार-बार बीमार पड़ने के भी हो सकते हैं।
विशेषज्ञ ने बताया कि तनाव, झुंझलाहट, भावनात्मक थकावट, खुद की उपस्थिति को बनाए रखने में प्रेरणा में कमी, काम के प्रदर्शन में कमी अनिच्छा के रूप में भी प्रकट हो सकता है। व्यक्ति एकाग्रता और स्मृति समस्याओं से भी जूझ सकते हैं।
राजमन्या ने कहा, “यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद को ‘उस बिंदु तक पहुंचने’ से रोकें और इसलिए जब कोई व्यक्ति ऐसा करता है, तो मदद की आवश्यकता को पहचानें।
कार्यस्थल मूल्यांकन और मान्यता संगठन ग्रेट प्लेस टू वर्क इंडिया की हाल ही में आई रिपोर्ट से पता चला है कि हर चार में से एक कर्मचारी को कार्यस्थल पर तनाव, बर्नआउट, चिंता या अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में बात करने में कठिनाई होती है।
बर्नआउट एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गया है। 56 प्रतिशत कर्मचारी इससे प्रभावित हैं। अध्ययनों ने कार्यस्थल पर तनाव के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों को भी दिखाया है।
जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि नौकरी का तनाव असंतुलन एट्रियल फाइब्रिलेशन (एएफआईबी) विकसित होने के जोखिम को काफी बढ़ा सकता है।
परामर्श मनोवैज्ञानिक और संस्थापक दिव्या मोहिंद्रू ने आईएएनएस को बताया कि भावनात्मक रूप से सोचने के बजाय अधिक व्यावहारिक रूप से सोचना और अपनी भावनाओं और व्यावहारिक जीवन के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कुछ उपाय सुझाए, जो कोई व्यक्ति अपने जीवन में तनाव के प्रभाव को कम करने के लिए उठा सकता है।
मोहिंद्रू ने कहा, पूरे दिन खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें, पौष्टिक भोजन खाएं और 45 मिनट का व्यायाम करें। इससे आप खुश और अच्छा महसूस करेंगे।
–आईएएनएस
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