नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)। विश्व अंग दान दिवस पर विशेषज्ञों ने कहा कि अंधविश्वास, जागरूकता की कमी और कई तरह के मिथक भारत में अंग बर्बादी की गंभीर समस्या का कारण है।
हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है, ताकि लोगों में अंगदान के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा सके और इसके बारे में फैले मिथकों को दूर किया जा सके।
भारत में मृत शरीर से अंग दान की दर बहुत कम है और देश में प्रति दस लाख लोगों पर एक से भी कम है। इसके उलट पश्चिमी देशों में 70-80 प्रतिशत अंग दान होता है।
कोलकाता के नारायण हेल्थ में कंसल्टेंट – नेफ्रोलॉजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट डॉ. तनिमा दास भट्टाचार्य ने आईएएनएस को बताया, “भारत में अंग बर्बादी एक गंभीर संकट है। जागरूकता की कमी के साथ कई तरह के मिथकों के कारण हर साल लगभग 2 लाख किडनी और अन्य महत्वपूर्ण अंग नष्ट हो जाते हैं।”
भट्टाचार्य ने कहा कि अस्पतालों में ब्रेन डेड केस की उचित पहचान न हो पाने के कारण नुकसान और भी बढ़ जाता है, जिससे संभावित दाताओं की उपलब्धता के बावजूद देश में अंग दान की दर में उल्लेखनीय कमी आ रही है।
विशेषज्ञों ने कहा कि मस्तिष्क स्टेम मृत्यु के दस्तावेजीकरण में सुधार के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के हाल के निर्देशों के बावजूद शव अंग दान की दर में चिंताजनक रूप से कमी बनी हुई है, जो प्रति वर्ष प्रति दस लाख जनसंख्या पर एक डोनर से भी कम है।
दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. राजेश अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, “भारत जैसी आबादी वाले देश में यह एक विडंबना है कि हर साल हजारों जीवन रक्षक अंग बर्बाद हो जाते हैं। उपलब्ध अंगों और जरूरतमंद रोगियों की संख्या के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। लॉजिस्टिक और सिस्टमिक चुनौतियों के कारण व्यवहार्य अंगों की बर्बादी एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।”
पी. डी. हिंदुजा अस्पताल और मेडिकल रिसर्च सेंटर की निदेशक-कानूनी और चिकित्सा डॉ. सुगंती अय्यर ने कहा कि अगर हम स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आम जनता में ब्रेन डेड के बाद अंग दान के बारे जागरूकता को लेकर बात करें तो भारत में अंग बर्बादी संकट को कम किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा गैर प्रत्यारोपण अंग पुनर्प्राप्ति केंद्रों के रूप में पंजीकृत अस्पतालों की संख्या बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए केंद्रित प्रशिक्षण और सामुदायिक आउटरीच से बर्बादी को रोकने में मदद मिल सकती है
स्पेन का उदाहरण देते हुए डॉ. भट्टाचार्य ने सुझाव दिया कि भारत को मस्तिष्क मृत्यु के बाद दाताओं से हटकर रक्त संचार मृत्यु के बाद दाताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसमें अंग की बर्बादी को रोकने की बहुत बड़ी क्षमता है।
स्पेन के ऑर्गनाइजेशन नेशनल डी ट्रांसप्लांट्स (ओएनटी) मॉडल ने अंग दान की दर में नाटकीय रूप से वृद्धि की है। ओएनटी में रक्त संचार संबंधी मृत्यु का सामना कर रहे रोगियों के दान किए हुए अंग होते हैं।
विशेषज्ञों ने अंग परिवहन प्रोटोकॉल को सुव्यवस्थित करने के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने का भी आह्वान किया कि प्रत्यारोपण में किसी भी देरी को कम करके प्रत्येक संभावित दाता के दान का सम्मान किया जाए।
जब किसी ब्रेन डेड मरीज की पहचान हो जाती है तो अंगों को निकालने और प्रत्यारोपित करने के लिए सिर्फ 12 घंटे का समय होता है। इसके लिए निर्बाध समन्वय और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, ”प्रत्येक अंग का समय पर प्रत्यारोपण न होने से हम अनेक जीवन बचाने का अवसर खो देते हैं, जिससे हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपने अंग पुनर्प्राप्ति और प्रत्यारोपण नेटवर्क को मजबूत करें।”
डॉ. भट्टाचार्य ने कहा, ”अंग मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटने के लिए भारत को एक व्यापक और केंद्रीकृत अंग दान रजिस्ट्री लागू करनी चाहिए। कानूनों को संशोधित करने के साथ अधिक अंग दान के लिए प्रोत्साहित करने तथा अंग निकालने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिए।”
–आईएएनएस
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