न्यूयॉर्क, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। एक नई स्टडी के अनुसार, जो लोग प्रति सप्ताह रेड मीट की केवल दो सर्विंग खाते हैं, उनमें मधुमेह विकसित होने का खतरा उन लोगों की तुलना में अधिक हो सकता है जो कम मात्रा में रेड मीट खाते हैं। अधिक सेवन से यह जोखिम बढ़ जाता है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए स्टडी में पाया गया कि रेड मीट को स्वस्थ प्रोटीन स्रोतों जैसे कि नट्स और फलियां या मामूली मात्रा में डेयरी खाद्य पदार्थों से बदलने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा कम हो जाता है।
हार्वर्ड में पोषण विभाग में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो जिओ गु ने कहा, ”हमारे निष्कर्ष आहार संबंधी दिशानिर्देशों का दृढ़ता से समर्थन करते हैं जो रेड मीट के सेवन को सीमित करने की सलाह देते हैं, और यह प्रोसेस्ड और अनप्रोसेस्ड रेड मीट दोनों पर लागू होता है।”
द अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित स्टडी के लिए, शोधकर्ताओं ने नर्सेज हेल्थ स्टडी(एनएचएस), एनएचएस 2 और हेल्थ प्रोफेशनल्स फॉलो-अप स्टडी(एचपीएफएस) के 216,695 प्रतिभागियों के हेल्थ डेटा का विश्लेषण किया।
36 सालों तक हर दो से चार साल में भोजन आवृत्ति प्रश्नावली के साथ आहार का मूल्यांकन किया गया।
इस दौरान, 22,000 से अधिक प्रतिभागियों को टाइप 2 मधुमेह विकसित हुआ।
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रोसेस्ड और अनप्रोसेस्ड रेड मीट सहित रेड मीट का सेवन, टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ था।
जिन प्रतिभागियों ने सबसे अधिक रेड मीट खाया, उनमें सबसे कम रेड मीट खाने वालों की तुलना में मधुमेह विकसित होने का खतरा 62 प्रतिशत अधिक था।
प्रोसेस्ड रेड मीट की हर अतिरिक्त डेली सर्विंग मधुमेह के विकास के 46 प्रतिशत अधिक जोखिम से जुड़ी थी और अनप्रोसेस्ड रेड मीट की हर अतिरिक्त डेली सर्विंग 24 प्रतिशत अधिक जोखिम से जुड़ी थी।
शोधकर्ताओं ने रेड मीट की एक डेली सर्विंग को दूसरे प्रोटीन स्रोत से बदलने के संभावित प्रभावों का भी अनुमान लगाया।
उन्होंने पाया कि इसके स्थान पर नट्स और फलियों का सेवन करने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा 30 प्रतिशत कम होता है और इसकी जगह डेयरी उत्पाद का इस्तेमाल करने से 22 प्रतिशत कम खतरा होता है।
–आईएएनएस
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