संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर चीन की आपत्ति

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर चीन की आपत्ति

बीजिंग, 1 अगस्त (आईएएनएस)। अमेरिकी प्रतिनिधि सदन ने हाल ही में एक तथाकथित “थाईवान अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता अधिनियम” पारित किया, जिसमें दावा किया गया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव नंबर 2758 केवल चीन लोक गणराज्य की सरकार को संयुक्त राष्ट्र में चीन का एकमात्र कानूनी प्रतिनिधि मानता है, लेकिन इसमें संयुक्त राष्ट्र में थाईवान के प्रतिनिधित्व और चीन लोक गणराज्य और थाईवान के संबंध पर कोई रुख नहीं अपनाता है। इस तरह का तर्क संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव को विकृत करता है और थाईवान मुद्दे पर अमेरिका द्वारा जनमत धोखाधड़ी है।

संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव नंबर 2758 में कहा गया है कि चीन लोक गणराज्य के सभी अधिकार बहाल किए जाने चाहिए और थाईवान के अवैध प्रतिनिधियों को तुरंत निष्कासित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, प्रस्ताव में स्पष्ट कहा गया कि चीन लोक गणराज्य की सरकार संयुक्त राष्ट्र में चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है, और कोई तथाकथित “दो चीन” या “एक चीन, एक थाईवान” मुद्दे नहीं हैं। इस प्रस्ताव ने संयुक्त राष्ट्र में थाईवान सहित पूरे चीन के प्रतिनिधित्व के मुद्दे को राजनीतिक, कानूनी और प्रक्रियात्मक रूप से पूरी तरह से हल कर दिया।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि काहिरा घोषणा और पोट्सडैम उद्घोषणा सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनी दस्तावेजों ने थाईवान पर चीन की संप्रभुता की पुष्टि की है। अमेरिका इन महत्वपूर्ण दस्तावेजों का हस्ताक्षरकर्ता देश है। निसंदेह, अमेरिका ये सब साफ़-साफ़ जानता है। 

 

हाल के वर्षों में, अमेरिका ने थाईवान की तथाकथित “सार्थक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी” को बढ़ावा देना जारी रखा है, लेकिन हर बार हारा है। अल साल्वाडोर, सोलोमन द्वीप, किरिबाती, निकारागुआ, होंडुरास… थाईवान के तथाकथित “राजनयिक देशों” ने एक के बाद एक चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। अमेरिका का मानना ​​​​है कि संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव नंबर 2758 में निर्धारित एक-चीन सिद्धांत “थाईवान की स्वतंत्रता” को रोकता है, इसलिए अमेरिका ने लोगों को भ्रमित करने और प्रस्ताव न. 2758 से थाईवान को “अलग” करने के लिए घरेलू कानून का उपयोग करने की कोशिश की। अमेरिका का उद्देश्य थाईवान जलडमरूमध्य मुद्दे में हस्तक्षेप करने के लिए बहाने ढूंढना है।

एक-चीन सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आम सहमति है। अमेरिका सहित दुनियाभर के 182 देशों ने एक-चीन सिद्धांत के आधार पर चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं, और सभी ने थाईवान के साथ “अनौपचारिक” तरीके से गैर-सरकारी के तरीके से आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को संभालने का वादा किया है। डब्ल्यूटीओ, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति, एशियाई-प्रशांत सहयोग संगठन (एपेक) और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों में, आयोजकों को थाईवान की भागीदारी जैसे मुद्दों पर राय लेने के लिए चीन के साथ परामर्श करने की आवश्यकता है।

अमेरिका घरेलू कानून के रूप में एक-चीन सिद्धांत को चुनौती देता है, जो युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सर्वसम्मति, अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानदंडों को चुनौती देता है। यह भी साबित करता है कि अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का सबसे बड़ा विध्वंसक है।

(साभार– चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

–आईएएनएस

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