न्यूयॉर्क, 13 अगस्त (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन के अनुसार, शनि ग्रह पर लंबे समय तक चलने वाले महातूफान आते हैं जिनका प्रभाव वायुमंडल पर गहरा होता है, जो सदियों तक बना रहता है।
पहले, केवल बृहस्पति ग्रह पर ही महातूफान आने की जानकारी थी। सौर मंडल का सबसे बड़ा तूफ़ान, 10,000 मील चौड़ा एंटीसाइक्लोन जिसे ग्रेट रेड स्पॉट कहा जाता है, ने भी सैकड़ों वर्षों से बृहस्पति की सतह को चपेट में ले रखा है।
अध्ययन के मुख्य लेखक और मिशिगन-एन आर्बर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर चेंग ली ने कहा, “सौर मंडल में सबसे बड़े तूफानों के तंत्र को समझना तूफान के सिद्धांत को एक व्यापक ब्रह्मांडीय संदर्भ में रखता है, जो हमारे वर्तमान ज्ञान को चुनौती देता है और स्थलीय मौसम विज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाता है।”
नए अध्ययन के लिए, खगोलविदों ने शनि से आने वाले रेडियो उत्सर्जन को देखा, जो सतह के नीचे से आता है, और अमोनिया गैस के वितरण में दीर्घकालिक व्यवधान पाया।
उन्हें ग्रह से रेडियो उत्सर्जन में कुछ आश्चर्यजनक मिला। वायुमंडल में अमोनिया गैस की सांद्रता में विसंगतियाँ, जिसे उन्होंने ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में महातूफान की पिछली घटनाओं से जोड़ा था।
टीम के अनुसार, मध्य ऊंचाई पर अमोनिया की सघनता सबसे ऊपरी अमोनिया-बर्फ बादल परत के ठीक नीचे कम है, लेकिन कम ऊंचाई पर, वायुमंडल में 100 से 200 किलोमीटर की गहराई में समृद्ध हो गई है। उनका मानना है कि अमोनिया को वर्षा और पुनर्वाष्पीकरण की प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊपरी से निचले वायुमंडल में ले जाया जा रहा है। इसका प्रभाव सैकड़ों वर्षों तक रह सकता है।
साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि हालांकि शनि और बृहस्पति दोनों हाइड्रोजन गैस से बने हैं, लेकिन दोनों ग्रहों में काफी भिन्नता है।
बृहस्पति में क्षोभमंडल संबंधी विसंगतियाँ हैं, जो इसके क्षेत्रों (सफ़ेद बैंड) और बेल्ट (गहरे बैंड) से बंधी हुई हैं और शनि की तरह तूफानों के कारण नहीं होती हैं।
इन पड़ोसी ग्रहों के बीच काफी अंतर यह चुनौती दे रहा है कि वैज्ञानिक इन तथा अन्य ग्रहों पर महातूफान के बनने के बारे में क्या जानते हैं और यह बता सकते हैं कि वे भविष्य में एक्सोप्लैनेट पर कैसे पाए जाते हैं और उनका अध्ययन किया जाता है।
–आईएएनएस
एकेजे